Tuesday, December 14, 2010

Shikva

गैरों के छलने पर शिकवा करते हो,
उससे पूछो जो अपनों से छला गया है.

गैरों का क्या है, उनसे तुमको क्या लेना,
आज साथ हैं कल ठुकरा कर चल देंगे,
उन्हें नहीं कुछ पड़ी तुम्हारे आंसू की,
ये मत सोचो साथ सदा, हर पल देंगे.
पर ये सब तो ज़ाहिर है, सदमा कैसा?
उसकी सोचो जिसका अपना चला गया है.

वो बेचारा तो सपनों में खोया होगा,
नींद भरी रातों में थक कर सोया होगा,
इक पल को भी उसने ये ना सोचा होगा,
उसका हमदम ही उसको यूँ धोखा देगा.
सोचो उस पर आख़िर कैसी गुज़री होगी,
दोस्त बनाकर काटा जिसका गला गया है.

उसने सोचा होगा बिछड़ा यार मिला है,
बरसों बाद किसी का सच्चा प्यार मिला है,
उसे क्या पता पल भर की ये खुशियाँ हैं,
सच में तो उसको झूठा संसार मिला है.
कहाँ आरज़ू थी ज़ख्मों को मरहम की,
कहाँ ज़ख्म पर नमक और कुछ मला गया है.

गैरों के छलने पर शिकवा करते हो,
उससे पूछो जो अपनों से छला गया है.


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